त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा
त्रिपिंडी श्राध्द पूजा क्या हैं?
त्रिपिंडी मतलब ३ पिढियों का पिंडदान| हमारे खादान में ३ पिढिओं में बाल्य अवस्था, युवा अवस्था या व्रुद्ध अवस्था में किसी की म्रुत्यु हुई हो तो उनकी आत्मायें प्रेत्योनी में चली जाती है| फिर वो हमे पिडा देने लगती है| तो उन आत्माओं को मुक्ति मिलने के लिये त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है|
त्रिपिंडी श्राध्द पूजा क्यों करनी चाहिये?
सामान्य रूप से बडे आदमी के मरने के बाद उसका क्रियकर्म, पिंडदान, श्राद्ध ये हम करते है| लेकिन किसी बालक कि म्रुत्यु होने पर ये होता नही है| एसे में उन्हें मिक्ति नही मिलती| यहि एक पूजा है जिससे आप बाल्य अवस्था के लिये पिंड्दान करते है| त्रिपिंडी पूजा मे होनेवाले पिंडदान से बाल्य + तारुण्य + व्रुद्ध आत्माओं को मुक्ति मिलती है|
त्रिपिंडी श्राध्द पूजा के लिये कौन बैठ सकता है?
जिन के कुंडली में दोष बताया हैं उसे ये पूजा करनी चाहिये| विवाहित, अविवाहित कोइ भी ये पूजा कर सकता हैं| केवल अकेली महिला ये पूजा नही कर सकती| हिंदु धर्म मे महिलाओं को पिंड दान करने का अधिकार नही है| अपने परिवार का कोइ भी पुरुष ये पूजा कर सकता है|
त्रिपिंडी श्राध्द पूजा करने के फायदे?
३ पीढीओं के पितृदोष का निवारण इस पूजा मे होता है| इस पिंडदान से पित्रों को मुक्ति मिलती है| पूजा से पित्रों का आशिर्वाद परिवार को मिलते है| त्रिपिंडी श्राद्ध का सबसे बडा फायदा घर में सुख़ शांती रहती हैं| धन मे व्रिद्धि होती है| बिमारी घर से दुर रहती है| गुणवान संतान की प्राप्ति होति हैं| शादी के योग बढते है| परिवार मे किसि की अकाल म्रुत्यु नही होती| मरे हुए लोग सपने मे नही आते| काम धंदे मे बरकत होती है| पिंड्दान - पित्रु सेवा करनेवालॉं को तीनो लोक मे मानसम्म्न मिलता है| खुद को भी मरने के बाद मुक्ती मिलति है|
त्रिपिंडी श्राध्द
त्रिपिंडी श्राध्द कईबार ऐसा होता है की अपने पूर्वजोंके श्राध्दादी, तर्पणादी कर्म करने की मन में इच्छा होने पर भी हम वह कर नही पाते । कभी श्राध्द कर्ता को परेशानी आती है अथवा श्राध्दादी कर्म की सामुग्री के कमीसे श्राध्दादी कर्म ठीकसे हो नही पाते । ऐसा होनेसे श्राध्द कर्म का लोप होता है। ऐसा अगर तीन सालों तक होता रहा तो पितरों को प्रेतत्व प्राप्त होता है । इस वजह से घर में अशांती, घर मे शुभ कार्य का अभाव, नौकरी, व्यवसाय में असफलता तथा मृत पुर्वजोंके सपने दिखना, दिन प्रतिदिन समृध्दता कम होना, घरमें अनिष्ठ शक्तियोंका प्रभाव बढ़ना, मानसिक अस्वास्थ महसूस होना आदि समस्या पर एकमात्र उपाय है वह है त्रिपिंडी श्राध्द ।
यह एक काम्य विधान (कामना पूर्ती के लिए) है। मन में कोई इच्छा रखकर करनेसे इस श्राध्दविधी का फल अवश्य प्राप्त होता है । श्राध्द चिंतामणी इस ग्रंथ के अनुसार श्राध्दकर्म और और्ध्वदेहिक कर्म न होने से घर मे अशांती निर्माण होती है । घरवाले व्यक्ती को दुर्धर रोग, बिमारी होती है इसलिए त्रिपिंडी श्राध्द किया जातका है । घर में अगर पिशाच्च बाधा अथवा तांत्रिक उपाय किये गये हो तो निवारणार्थ यह श्राध्द किया जाता है।
पिशाच्च योनी कुल ३ प्रकारकी होती है - तमोगुणी, रजोगुणी, तथा सत्वगुणी.
पृथ्वीपर निवास करनेवाले पिशाच्च तमोगुणी, अंतरीक्षमे निवास करनेवाले रजोगुणी एवं वायुमंडल मे निवास करनेवाले सत्वगुणी पिशाच कहलाते है । इन ३ प्रकारोंमेंसे जिस किसी पिशाच्च योनी का आत्मा अतृप्त रहता है, उसके पीडा निवारणार्थ हेतू 'त्रिपिंडी श्राध्द' किया जाता है । इस विधीनुसार पितृवंश, मातृवंश (मातुल घराना) गुरूवंश, श्वशुर (ससुर वंश) एवं सगोत्री परिजनोंके वंश का विचार किया जाता है। इनमेंसे पर्याप्त कोनसे वंश से पिडा हो रही है यह ज्ञात न होने की वजह से यह श्राध्द अनादिष्ट नाम एवं अनादिष्ट गोत्र से संपन्न की जाती है याने इसमे किसी के गोत्र का और नाम का उल्लेख नही किया जाता। एकोद्दिष्ट विधानेन एक तन्त्रेण तद्भवेत ।
पिशाच्चविमोचनतीर्थे कुशावर्ते विशेषतः ।। इस श्लोक के अनुसार यह एक एकोदिष्ट स्वरूप का श्राध्दविधी है । विधी से पूर्व गंगाभेट एवं शरीर शुध्दी हेतू प्रायश्चित्तादी कर्म किये जाते है । संकल्प करके विधी आरंभ होता है । ब्रम्हा, विष्णू, महेश यह इस विधीकी प्रमुख देवता है । इन देवताओंकी प्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठात्मक पूजन किये जाते है । यह देवता सत्व, रज,तमोगुणी, बाल, युवा एवं वृध्द अवस्थाओंके अनादिष्ट प्रेतात्माओंको सद्गती प्रदान करते है ।
ब्रम्हदेव की प्रतिमा (मूर्ती) रौप्य, विष्णू प्रतिमा सुवर्ण एवं रूद्र प्रतिमा ताम्र धातू की होती है । इन तीनों देवताओंके पुजन पश्चात प्रेतयोनी प्राप्त आत्माके शांती प्रित्यर्थ श्राध्द किया जाता है। जिसे चटरूपी श्राध्द कहते है।
तिनो योनीयोंके जिवात्माओंका याने सत्व, रज, और तमोगुणी योनी के जीवात्माओंका आवाहन किया जाता है । उन्हे समपर्क तीन पिंडोका श्राध्द किया जाता है।
।प्रथम पिंड जव, द्वितीय पिंड चावल (तंदूल), एवं तृतीय पिंड तिल का होता है। अनुक्रमसे बाल, युवा व वृध्द वैसेही दिविस्थ अंतरिक्ष व भुमिस्थ अवस्था में स्थित जीवात्मा के उद्देश्यसे यह पिंडदान कीया जाता है। जव - राजस गुण प्रतित करता है, चावल सात्विक, एवं तिल तामस गुण दर्शाता है । पिंड पुजा के पश्चात अंत में प्रार्थना की जाती है की हमारे वंश को पीडा उत्पन्न करने वाले प्रेतयोनी मे स्थित जीवात्मा की त्रिपिंडी श्राध्द द्वारा सभी वासनाओं की तृप्ती होकर उसे सद्गती प्रदान हो । इस विधीके अंगभूत पुरोहित को यथोचित दान दिये जाते है ।
त्रिपिंडी श्राध्द का अधिकार
त्रिपिंडी श्राध्द विवाहीत सपत्नीक अथवा अविवाहीत पुरूष को संपन्न करने का अधिकार है । यदी पत्नी जिवीत नही तो पुरूष अकेले भी यह विधी कर सकता है ।
विधी की सामुग्री :- यजमान पती पत्नी नए वस्त्र परिधान करे, पुरूषोंके लिए धोती एवं पंचा (गमछा), स्त्री (पत्नी) नई साडी, ब्लाऊज, पेटीकोट इ ।
तीन देवताओंकी चांदी, सोना एवं ताम्र प्रतिमा, ताम्र धातू के ३ कलश, पुर्णपात्र, आसन, पुजा सामुग्री, पिंडदान के लिए तील, जव, एवं चावल के पिंड इ ।
यथाशक्ती दान :- सुवर्ण, रौप्य, ताम्र, गाय,शाल, पितांबर, चावल, जव, काले तील, छाता, खडावा, कमंडलू इत्यादी अथवा इन सभी दानों के प्रित्यर्थ यथाशक्ती पुरोहित को दक्षिणा दान करे ।
त्रिपिंडी श्राध्द कहाँ और कब करें?
अवर्णनीयो महिमा त्रिपिंडी श्राध्द कर्मणः ।
अतः सर्वेषु कालेषु त्र्यंबकेतु विशिष्यते।। इस पंक्तीनुसार त्रिपिंड श्राध्दविधी त्र्यंबकेश्वर कुशावर्त तीर्थपर अश्वत्थ वृक्ष की छाया में कपर्दिकेश्वर महादेव के सान्निध्य में संपन्न करे । त्रिपिंडी श्राध्दमे यकेचितप्रेतरूपेण पिड्यंते महेश्वर ऐसा वचन है । महेश्वर अर्थात त्र्यंबकेश्वर । त्रिपिंडी श्राध्द वचनानुसार हे महेश्वर (त्र्यंबकेश्वर) जो कोई हमे प्रेतरूपसे दुर्धर पिडा निर्माण कर रहा है उन सभी को नष्ट कर ऐसी प्रार्थना की गई है।
इसीलिए त्रिपिंडी श्राध्द विधी त्र्यंबकेश्वर में सपन्न करे। कार्तिके श्रावणे मासे मार्गशीर्षे तथैव च।
माघ फाल्गुन वैशाखे शुक्ले कृष्णे तथैवच। चतुर्दश्यां विशेषेण षण्मासाः कालउच्चते ।।
यह विधी श्रावण, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन, वैशाख इन माह के , शुक्ल अथवा कृष्ण पक्ष इन तिथीयोंपर एवं त्रिम्बकेश्वर पर उचित माना जाता है । अमावस को भी यह विधी संपन्न करना योग्य माना जाता है । मानव का एक मास (महिना) पितरोंका एक दीन होता है । अमावस को एक मास खतम होकर अगले तीथी को नया मास शुरू होता है । अमावस को पितरोंका भी दीन बदलता है इसलिये अमावस त्रिपिंडी श्राध्द के लिए उचित मानी जाती है। परिवार में जब अत्याधिक संकटे निर्माण होती है तो त्रिपिंडी श्राध्दविधी तत्काल करना उचित माना गया है । यह विधी केवल एक दिन में संपन्न होती है ।